BHDLA- 136 ( Hindi bhasha lekhan Kaushal ) || हिन्दी भाषा : लेखन कौशल- Most important question answer

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( परिचय )

प्रिय विद्यार्थियों इस वाले Article में हम आपको बताने वाले हैं BHDLA- 136 ( Hindi bhasha lekhan Kaushal- Most important question answer  ) हिन्दी भाषा : लेखन कौशल,  इसमें आपको सभी important question- answer देखने को मिलेंगे इन question- answer को हमने बहुत सारे Previous year के  Question- paper का Solution करके आपके सामने रखा है  जो कि बार-बार रिपीट होते हैं, आपके आने वाले Exam में इन प्रश्न की आने की संभावना हो सकती है  इसलिए आपके Exam की तैयारी के लिए यह प्रश्न उत्तर अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। आपको आने वाले समय में इन प्रश्न उत्तर से संबंधित Video भी देखने को मिलेगी हमारे youtube चैनल Eklavya ignou पर, आप चाहे तो उसे भी देख सकते हैं बेहतर तैयारी के लिए



1) सरकारी पत्राचार कि प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए?

सामान्य रूप से पत्रों को दो भागों में बांटा जाता है औपचारिक तथा अनौपचारिक परंतु औपचारिक पत्रों से एक कदम ऊपर सरकारी पत्राचार होता है। सरकारी विभागों में देने वाले पत्रों को सरकारी पत्राचार कहा जाता है।
 कार्यालय में प्राप्त पत्र को कार्यालय भाषा में आवती का नाम दिया गया है मंत्रालय कार्यालय के पास जैसे ही कोई पत्र पहुंचता है तो उसे संबंधित विभाग की आवती रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। यदि आवर्ती पर अनुभाग के उच्च अधिकारी की आवश्यकता ना हो तो निम्न अधिकारी उस आवती पर कार्रवाई कर आगे ब्यौरा देते हैं। 

कार्यालय में किसी पत्र के प्राप्त होते ही उस पर कार्रवाई का एक लंबा सिलसिला शुरू हो जाता है जो उसके अंतिम रूप निपटारे तक जाकर पहुंचता है यह कार्रवाई टिप्पणी कार्य के नाम से जानी जाती है प्रत्येक कार्य के हर चरण में दिए गए सुझाव संकेत निर्देश दर्ज किए गए तथ्य सूचनाएं आदि टिप्पणी कहलाती है बिना किसी कार्य के किसी भी पत्र का अंतिम रूप नहीं दिया जा सकता।

आवर्ती मिलने के बाद उसे संबंधित विभाग में निपटारे के लिए भेज दिया जाता है यदि इस विषय पर पहले से कोई फाइल मौजूद है तो उस बारे में जानकारी दी जाती है अन्यथा उस पर एक नई फाइल बनाकर आवर्ती को आगे बढ़ाया जाता है। 

टिप्पणी लेखन के समय ध्यान रखने योग्य बातें-

संक्षिप्त: टिप्पणी में बात संचित और प्रभावपूर्ण ढंग से होनी चाहिए

तार्किक विचार क्रम: पूरी टिप्पणी एक तार्किक विचार के साथ लिखी जानी चाहिए टिप्पणी में हर पृष्ठ एक दूसरे से संबंधित हो ताकि उस पर कार्यवाही की जा सके।

स्पष्टता: टिप्पणी में बात स्पष्ट रूप से व सरल तरीके से लिखी जानी चाहिए

तटस्थता: टिप्पणी में किसी संस्था व्यक्ति के बारे में व्यक्तिगत बातें ना करके केवल अपनी समस्या और समाधान के बारे में लिखना चाहिए।

टिप्पणी लिखने के बाद एक खास तरह के कागज का प्रयोग होता है जिसे नोटशीट कहते हैं। तैयार की गई नोटशीट को संबंधित अधिकारी और विभाग सावधानीपूर्वक पढ़ते हैं यदि वह अपनी और से कोई बातें सुझाव देना चाहते हैं तो उसे संबंधित अधिकारी के पास भेजा जा सकता है जिन मामलों को निपटारा करने में विभाग स्वयं सक्षम होता है उन्हें आगे न भेजकर वे स्वयं निर्णय दे देता है

इस प्रकार सरकारी पत्राचार की प्रक्रिया को संपन्न किया जाता है जिसके द्वारा सामान्य नागरिक अपनी समस्या संबंधित विभाग से पूछ कर हर भी मांग सकता है संबंधित विभाग उस पर विचार विमर्श कर समस्या हल करने का पूरा प्रयास करता है।

2) अनुवाद की प्रक्रिया में अर्थ ग्रहण का आशय स्पष्ट कीजिए?

लेखन कार्य बहुत से रूपों में किया जाता है उसमें से एक रूप अनुवाद का भी है अनुवाद के द्वारा एक भाषा से दूसरी भाषा में अपने भावों विचारों को प्रकट किया जाता है। अनुवादन क्रिया एक कला है इसका ज्ञान अनुवादक को होना आवश्यक है अनुवाद एक पूरी प्रक्रिया के तहत किया जाता है ।अनुवाद की प्रक्रिया में सर्वप्रथम अर्थ ग्रहण व द्वितीय स्थान पर संप्रेक्षण को रखा जाता है

अनुवाद क्रिया में अर्थ ग्रहण की प्रक्रिया को निम्नलिखित रुप से विस्तार पूर्वक बताया गया है-

अर्थ ग्रहण- अनुवादक को मूल भाषा व स्रोत भाषा दोनों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है इसके अभाव में अनुवाद अन क्रिया संपन्न नहीं की जा सकती। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है उसे स्रोत भाषा तथा जिस में अनुवाद करना है उसे लक्ष्य भाषा कहा जाता है। अनुवाद क्रिया में अनुवादक को कुछ भी नया जोड़ने या घटाने की अनुमति नहीं है।

शब्द बोध - अर्थ ग्रहण करने के लिए आपको सर्वप्रथम उस साहित्य को पढ़ना अनिवार्य है जिसे आप अनुवाद करना चाहते हैं यह पढ़ने की प्रक्रिया दो बार करना जरूरी है  दो बार पढ़ने के बाद आपको कुछ ऐसे शब्द अवश्य प्राप्त होंगे जिनका अर्थ अनुवादक को ज्ञात ना हो इसके लिए  अनुवादक शब्दकोश की सहायता ले सकता है। शब्द का अर्थ जाने बिना अनुवाद करना अनुचित होगा। एक शब्द के बहुत से अर्थ होते हैं प्रसंग के अनुसार जिस अर्थ की आवश्यकता है उसे उपयोग करना उचित होगा। अनुवादक का शब्द ज्ञान उच्च स्तर पर होना चाहिए। 

वाक्य बोध- प्रसंग के अनुसार शब्दों का चयन मात्र से ही अनुवाद कार्य संपन्न नहीं होता इन शब्दों को एक तार में पिरो कर एक सही वाक्य बनाना भी जरूरी है। वाक्यों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है। जब तक अनुवादक वाक्यों में शब्दों की सार्थकता ना समझे वाक्य रचना अर्थहीन होती है।  जब तक अनुवादक वाक्य का अर्थ अच्छी तरह नहीं समझ लेता अनुवाद कार्य असफल ही होगा। 

रचना बोध- अनुवादक के पास सही शब्द बोध वह वाक्य बोध होना जरूरी है परंतु विचार कीजिए अनुवादक में सही शब्दों का चयन हुआ सही वाक्यों का निर्माण किया है परंतु अंत में उसे रचना करनी होती है। विषय की समुचित जानकारी रचना बोध के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि अनुवाद अन की प्रक्रिया में मुख्य रूप से अर्थ ग्रहण और संप्रेक्षण का कार्य किया जाता है अर्थग्रहण के अंदर सर्वप्रथम शब्दों का सही ज्ञान उन शब्दों से सही वाक्यों का निर्माण और आखिर में एक रचना का निर्माण किया जाता है जिससे अनुवाद अन कार्य सफलता की ओर बढ़ता है वह पाठक अनुवाद की गई सामग्री को सटीक अर्थग्रहण कर पाता है।

3) समाचार लेखन की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए?

समाचार पत्र आम इंसान को सामाजिक, आर्थिक ,खेलकूद और जीवन के अन्य पहलुओं से संबंधित सूचना प्रदान करता है विदेशों में क्या हो रहा है यह सूचना भी एक आम जन को पता चलती है। मीडिया और समाचार पत्र को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। समाचार पत्र लेखन की एक पूरी प्रक्रिया है जिसके तहत या बनकर तैयार होता है। आप सभी ने कभी ना कभी रेडियो, टेलीविजन के समाचार अवश्य सुने होंगे परंतु यह समाचार केवल 10-15 मिनट तक होते हैं तथा विस्तृत रूप से नहीं दिए जाते परंतु समाचार पत्र में यह समाचार विस्तृत वर्णन के साथ पाठक वर्ग को प्रदान किए जाते हैं जिससे पाठक वर्ग अपने पठन कौशल को भी बढ़ाता है। समाचार पत्र में देश-विदेश क्षेत्रीय व राष्ट्रीय सभी प्रकार के समाचारों का विवरण दिया जाता है समाचार पत्र में हर वर्ग के लिए कुछ ना कुछ दिया जाता है जिससे समाचारों में प्रत्येक वर्ग की रूचि बनी रहे। आज भारत में हिंदी ,अंग्रेजी ,बंगाली मराठी ,आदि समाचार पत्र छापे जाते हैं।
समाचार लेखन की प्रक्रिया संपादक द्वारा की जाती है यह प्रक्रिया विभिन्न चरणों में होती है जिसका वर्णन निम्नलिखित रुप से है-

समाचार लेखन के मुख्य रूप से 3 हिस्से होते हैं
1)शीर्षक
2)इंट्रो 
3)मुख्य कलेवर

शीर्षक-
समाचार का शीर्षक देना समाचार लेखन का महत्वपूर्ण है यदि समाचार का इंट्रो सफलतापूर्वक लिखा गया है तो शीर्षक देना कठिन कार्य नहीं है

शीर्षक देते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

  • स्पष्ट रूप में होना चाहिए 
  • शीर्षक में कहीं बात समाचार  में पुष्टि करने वाली होनी चाहिए 
  • शीर्षक ऐसा हो जो से समाचार को पढ़ने की उत्सुकता जगाए
  • शीर्षक समाचार के केंद्र भाव को व्यक्त करें

इंट्रो या आमुख-
समाचार में तीन चार पंक्तियां उस समाचार का साथ देने के लिए प्रयोग की जाती हैं इस साल में पाठक को पता चल जाता है कि वे किस बारे में समाचार पड़ रहा है समाचार के इस अंश को इंट्रो या लीड कहा जाता है इंट्रो लिखते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
क्या ,कब, कहां ,कैसे ,और कौन सी घटना इन पांच बातों का ध्यान रखना आवश्यक है एक उदाहरण के द्वारा इस बात को और अच्छी तरह समझा जा सकता है।
उदाहरण-_
दिल्ली में मलेरिया फैला हुआ है
मलेरिया की चपेट में आने से 40 लोगों की मौत हुई 
यह लोग 20 अगस्त को मरे 
अस्पताल में कुल मरीज 500 दर्ज किए गए हैं 
इनमें 400 मरीज मलेरिया के तथा 100 अन्य बीमारी से ग्रसित हैं

इस प्रकार इंट्रो में घटना का विवरण दिया जाता है। 

मुख्य कलेवर-
यह इंटरव्यू के बाद विस्तारपूर्वक दी जाने वाली जानकारी होती है इसमें पाठक वर्ग को सारी प्रकार की सूचनाएं प्रदान की जाती है इस भाग में कभी-कभी आपको गैर जरूरी सूचनाएं भी देखने को मिल सकती हैं। इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि मुख्य क्लेवर पाठ में गैर जरूरी व अधूरी सूचनाएं ना हो इसके लिए समाचार लेखन के प्रारंभ में ही तथ्यों को सही से जांच कर लेनी चाहिए 

  • महत्वपूर्ण सूचनाओं और तथ्यों  को महत्व देना चाहिए व महत्वहीन सूचनाओं को समाचार से हटा देना चाहिए ,बचे हुए तथ्यों को
  • एक क्रम से लगाकर पाठक वर्ग के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।
  • समाचार के केंद्र में शीर्षक को रखना अति आवश्यक है 
  • समाचार को निष्पक्ष होकर पाठक वर्ग के सामने प्रस्तुत करना चाहिए 
  • तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर बिल्कुल प्रस्तुत ना करें
  • समाचार की भाषा सरल व  स्पष्ट होनी चाहिए

समाचार पत्र लिखते समय यदि संपादक इस प्रक्रिया का पालन करें समाचार अत्यंत प्रभावशाली होगा समाचार लेखन की मुख्य रूप से तीन चरण दिए गए हैं इन चरणों में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

4) आख्यान लेखन की विशेषता बताइए?

मनुष्य में अपनी संवेदना,भावनाओं, विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा और लिपिओ का सहारा लिया। आख्यान लेखन इसी कला में से एक है। आख्यान लेखन मनुष्य की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। आख्यान लेखन व्यक्तिपरकता के साथ-साथ वस्तुनिष्ठता भी झलकती है आख्यान लेखन में भावों और विचारों को लेखक चित्रों के माध्यम से व्यक्त करता है और बीच-बीच में सीधे-सीधे अपनी बात भी कहने लगता है। आख्यान लेखन में लेखक अपनी स्मृति के आधार पर घटना और व्यक्तियों का वर्णन कर सकता है। 
आख्यान लेखन में चरित्रों के विकास और स्थितियों का वर्णन करते समय लेखक सच्चाई को भी दिखाता चलता है यह सच्चाई उस व्यक्ति व पूरे समाज की भी हो सकती है इस तरह यह लेखन व्यक्ति और घटनाओं के साथ सामाजिक सत्य का भी उद्घाटन करता है।
 
आख्यान लेखन का अर्थ-

आख्यान किसी वस्तु या घटना का हूबहू वर्णन नहीं है बल्कि इसमें वस्तु, व्यक्ति या घटना के विषय में लेखक की भावना भी प्रकट होती है

आख्यान लेखन की विशेषता:-

सरलता-

किसी भी लेखन में सरलता होना आवश्यक है जिससे पाठक वर्ग को कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े आख्यान पढ़ने में पाठक को अधिक दिमागी कसरत ना करनी पड़े इस बात का ध्यान रखा जाता है

प्रत्यक्ष वार्तालाप शैली-

इस शैली के अंतर्गत लेखक की कोशिश रहती है कि वह पाठक वर्ग से सीधे बातचीत करते हुए अपने उद्देश्य की पूर्ति करें लेखक पाठक वर्ग के सामने अपना दृष्टिकोण भी प्रकट करने का प्रयास करता है।

तथ्यपरकता-

आख्यान लेखन में तथ्यपरकता का महत्वपूर्ण स्थान रखा जाता है समय,स्थान और गतिविधि के वर्णन से आख्यान को ना केवल विकसित किया जा सकता है बल्कि इसमें काफी हद तक एक विश्वसनीयता भी आती है।

वैयक्तिकता-

वैयक्तिकता लेखन की एक विशेषता है इस शैली में प्रयोग से लेखक का व्यक्तिगत चरित्र उभरकर सामने आता है। लेखक के लेखन कौशल विचार इस शैली के अंतर्गत प्रकट होते हैं।

शैली-

शैली का लेखन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान होता है शैली पाठक वर्ग को लेखक को करीब लाने में सहायता करती है यह व्यक्ति की मौलिक सूझबूझ से अलग चीज नहीं है। लेखक ध्वनियों शब्दों और विचारों तथा व्याकरण को व्यवस्थित रूप देकर पाठक वर्ग को हमेशा प्रसन्न करने का प्रयास करता है ताकि उसकी लेखन की शैली स्पष्ट हो सके एक अच्छी शैली के माध्यम से लेखन कौशल में निरंतरता बनी रहे।

इस प्रकार आख्यान की कुछ विशेषताएं तय है आख्यान किसी वस्तु या घटना का हूबहू वर्णन नहीं है बल्कि इसमें वस्तु, व्यक्ति या घटना के विषय में लेखक की भावना भी प्रकट होती है इसलिए आख्यान परक लेखन में एक तरह की निष्ठा का भाव भी समाहित होता है।

5) वर्णनात्मक लेखन का आशय स्पष्ट कीजिए?

प्रत्येक मनुष्य विभिन्न प्रकार से कार्य करता है सभी की अपनी-अपनी रुचियां होती है उसी प्रकार साहित्य में भी सभी लेखकों की अपनी अपनी रूचि देखी जा सकती है अपनी रचना के लिए लेखक जिस प्रकार की रचना में रुचि रखते हैं उसी में कार्य करना पसंद करते हैं रचना के बहुत सारे प्रकार होते हैं जैसे वर्णनात्मक लेखन , आख्यान लेखन , तार्किक लेखन आदि। आज हम वर्णनात्मक लेखन की चर्चा करेंगे तथा इसकी कुछ विशेषताएं और प्रकार जानेंगे।

वर्णनात्मक लेखन का अर्थ- 

इस लेखन के अंतर्गत लेखक व्यक्ति ,स्थान, वस्तु या दृश्य का वर्णन करता है। 

किसी व्यक्ति के वर्णनात्मक लेखन से तात्पर्य है उसके बाहरी व आंतरिक चीजों के बारे में बताना जैसे उसका व्यवहार ,चाल- ढाल, कपड़े, रंग-रूप आदि।

किसी स्थान के वर्णनात्मक का अर्थ है- किसी स्थान की सुंदरता का वर्णन करना वह स्थान किस जगह पर स्थित है उसकी विशेषताएं बाहरी और आंतरिक सौंदर्य की जानकारी देना

वर्णनात्मक लेखन में स्थान दृश्य वस्तुओं का वर्णन मे हम उसकी रोचक घटनाएं जानकारियां आस पास के माहौल आदि के बारे में जानते हैं

इसी प्रकार देखा जा सकता है कि वर्णनात्मक लेखन का क्षेत्र बहुत अधिक नहीं है इसमें व्यक्ति वस्तु स्थान दृश्य आदि का वर्णन किया जाता है सभी प्रकार के वर्णन में आंतरिक और बाह्य सौंदर्य जानकारियां तथ्य पाठक वर्ग को प्रदान की जाती है कई बार आपने जीवनी ओं में व्यक्ति के सौंदर्य आदि के  बारे में पढ़ा होगा वह वर्णनात्मक लेखन में ही आता है। इसी प्रकार आपने कई बार ताजमहल या कुतुब मीनार के बारे में अध्ययन किया होगा वह भी वर्णनात्मक लेखन की एक शाखा है वर्णनात्मक लेखन केवल किसी एक विषय वस्तु का विस्तार पूर्वक वर्णन करना है।

6) एक अच्छे अनुवादक के लिए आवश्यक व्यवहारिक ज्ञान पर प्रकाश डालिए?

अनुवाद का संबंध भी लेखन कार्य से संबंधित है परंतु यह लेखन कार्य अन्य लेखन कार्य से भिन्न है अनुवाद कार्य के अंतर्गत एक भाषा को दूसरी भाषा में परिवर्तित करने का कार्य किया जाता है। 

अनुवाद का अर्थ-

संस्कृत कोष के अनुसार अनुवाद का अर्थ पुनरावृति को माना गया है परंतु यह पुनरावृति दूसरी भाषा में में की जाती है आज अनुवाद का यही अर्थ प्रचलित है दूसरी भाषा में अपनी बात को पुनरावृति करना इसे अंग्रेजी में ट्रांसलेशन का नाम दिया गया है।

एक भाषा में प्रकट किए गए विचारों व भाव को ज्यों का त्यों दूसरी भाषा में प्रस्तुत करने को अनुवाद का नाम दिया गया है। 
अनुवाद करने की एक पूरी प्रक्रिया तथा कुछ सिद्धांत होते हैं जिसका ज्ञान होना अनुवादक को आवश्यक है इन सिद्धांतों का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करके ही अनुवादक अनुवाद कार्य स्पष्ट ता पूर्वक संपन्न कर सकता है।
अनुवाद करने के लिए सर्वप्रथम अनुवादक के पास दोनों भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए जिस भाषा से वह अनुवाद कर रहा है वह जिसमें करना चाहता है उन भाषाओं को पढ़ना समझना यह अनुवाद किया कि पहली शर्त है इसके बिना अनुवाद कार्य संपन्न करना असंभव है

भाषा की प्रकृति-

अनुवाद करते समय अनुदित भाषा की प्रकृति की रक्षा करना  अनुवादक का प्रथम कर्तव्य बनता है। अनुवाद करते समय भाषा की प्रकृति में बदलाव ना आए यह ध्यान रखना चाहिए Perpostion लगाकर अंग्रेजी में जो वाक्य बनाएं जाते हैं उन्हें हिंदी में परिवर्तित करते समय सावधानी बरतनी चाहिए इन वाक्यों को अनुवाद करते समय लक्ष्य भाषा की प्रकृति को ध्यान रखना अनिवार्य है ताकि वाक्य के प्रकृति और उद्देश्य में परिवर्तन ना आए।

व्याकरण का ध्यान-

प्रत्येक भाषा की व्याकरण पद्धति भिन्न होती है इसी कारण अनुवाद करते समय अनुवादक को ध्यान रखना आवश्यक है उदाहरण के तौर पर pen of ram  यहां of कर्ता से पहले आया है जबकि हिंदी में यह उल्टा होता है हिंदी में राम की कलम कहा जाता है परंतु अंग्रेजी में इसे प्Perpostion के साथ जोड़ा जाता है इसी कारण अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करते समय कारक चिन्ह या परसर्ग के प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए।

शब्दों का सही प्रयोग-


अनुवाद करते समय सही शब्दों के चयन पर ध्यान रखना चाहिए एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं परंतु प्रत्येक वाक्य में यह अर्थ सही नहीं होते। प्रसंग के अनुसार शब्दों का चयन किया जाना चाहिए जिससे उसके अर्थ में बदलाव ना हो। 

वाक्य रचना-

जैसे कि पहले ही चर्चा की जा चुकी है अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दोनों का ही स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए यदि स्रोत भाषा में वाक्य रचना बड़ी और जटिल है तो यह कार्य अत्यंत कठिन हो जाता है इस स्थिति में अनुवादक को लक्ष्य भाषा में अनुवाद करते समय वाक्यों को छोटे-छोटे सरलतम रूप में अनुवाद करना सही होगा।

विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे हैं अनुवाद- 


आज अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद विभिन्न विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे हैं जैसे समाज विज्ञान सरकारी कार्यालय विज्ञान साहित्य आदि। इन अनुवाद कार्यों में बहुत सी गलतियां पाई जाती है जो आपने भी कभी ना कभी सामना किया होगा। 

समाज विज्ञान और विज्ञान: इन विषयों में अनुवाद कार्य करते समय सबसे बड़ी समस्या शब्दों की होती है अंग्रेजी के शब्द ज्यों के त्यों हिंदी में चुना अत्यधिक कठिन होता है यदि यह शब्द हिंदी शब्दावली से चुनरी लिए जाए तो यह पढ़ने और लिखने में अत्यधिक जटिल महसूस होते हैं। इस प्रकार के विषयों में अनुवाद करते समय शब्दों का ज्ञान होना अत्यंत ही आवश्यक है।

साहित्यिक अनुवाद: एक भाषा से दूसरी भाषा के साहित्य में अनुवाद करना एक कला है। इस प्रकार के अनुवाद में भाऊ अनुवाद पर अधिक बल दिया जाता है अनुवादक मूल रूप से विचारों भावों भाषा को जो कि तो रूप में डालने का पूरा प्रयास करता है।

स्वतंत्र अनुवाद: इस प्रकार के अनुवाद को सरलतम अनुवाद के रूप में देखा जाता है। अनुवादक मूल भाषा में कही गई बात को अपने ढंग से प्रस्तुत कर सकता है परंतु उसके उद्देश्य में बदलाव ना हो उसका अर्थ स्पष्ट रूप से निकले यह शर्त रखी जाती है। 

निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर एक अच्छे अनुवादक के रूप में कार्य किया जा सकता है अनुवाद करना एक कला है और इसे व्यवहार में लाकर ही अच्छा किया जा सकता है।

7) रचना की तैयारी किस प्रकार करनी चाहिए?

रचना लेखक के द्वारा अपने विचारों को सुनियोजित और संगठित प्रकार से बनाया गया लेख है लेखक अपनी रचना करने से पूर्व बहुत सी बातों का ध्यान देते हैं जिसके कारण उनकी रचना अत्यंत प्रभावशाली हो सके  लेखक 1 दिन में रचना नहीं करते हैं यह उनकी लंबे समय की कड़ी मेहनत का नतीजा होती है। किसी भी लेखों को रचना करने से पूछ कुछ तैयारियां वह सावधानियां बरतनी आवश्यक है जो इस प्रकार निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट है-

पाठकों की रूचि को समझना-


लेखक को यह ध्यान रखना होगा कि उसका पाठक वर्ग लेखक से क्या उम्मीद लगाए हुए हैं किस उम्र रुचि के व्यक्ति के लिए  लेखक अपनी रचना का निर्माण करेगा। जिस प्रकार शिक्षक कक्षा में जाने से पूर्व अपनी पाठ योजना में कक्षा के छात्रों का स्तर जांच लेता है उसी प्रकार लेखक को भी अपने पाठकों के रूचि का स्तर जानकर अपनी रचना तैयार करनी चाहिए।

विषय वस्तु के अनुसार शीर्षक-


कई बार लेखक अपनी रचना के अंदर अनुच्छेद को बढ़ा चढ़ा कर प्रकट करते हैं एक अनुच्छेद उतना ही बड़ा हो जितने में उस रचना के शीर्षक से संबंध किसी सूचना, चिंतन या तथ्य की चर्चा की गई हो। दूसरी सूचना  व तथ्य के लिए अगला अनुच्छेद प्रारंभ करना उचित होगा इससे पाठक वर्ग एक अनुच्छेद मैं कहीं नहीं बात को स्पष्ट रूप से समझ सकता है।

विषय वस्तु से संबंधित रचना-


शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि पाठक वर्ग को पढ़ने से पूर्व अंदेशा हो जाए इस रचना में किस विषय के ऊपर पठन करने जा रहे हैं यह उनकी पठन के प्रति एक अच्छी समझ बढ़ाने में सहायक सिद्ध होत होगा।

सूत्र को बनाए रखना-

रचना किस विषय में हो रही है अपने विषय से ना भटक कर अनुच्छेद को एक क्रम में लगाकर की रचना करना उचित है इस क्रम को रचना करने से पूर्व ही निर्धारित करना आवश्यक है ताकि गलतियों की संभावना कम से कम हो सके।

पूर्व योजना का निर्माण-


लेखक रचना करने से पूर्व  निर्धारित कर ले वह प्रारंभ , विस्तार और अंत में किन-किन चीजों को रखना उचित समझता है रचना का प्रारंभ उसके शीर्षक से जुड़ा हुआ होना चाहिए शीर्षक छोटा और विषय के बारे में जानकारी देने वाला हो विस्तार में शीर्षक के और रचना के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी हो निष्कर्ष में सभी पहलुओं को सम्मानित करना आवश्यक है।

जिज्ञासा को बनाए रखना-


रचना ऐसी होनी चाहिए कि पाठक वर्ग उससे बोरियत महसूस ना करें एक ही बात की अत्यधिक पुनरावृत्ति ना हो रचना के अंदर जिज्ञासा आगे पढ़ने की लालसा पाठक के अंदर बनी रहनी चाहिए।

यदि लेखक रचना से पहले ही यह सारी पूर्व नियोजित तैयारी कर लेता है तो उसकी रचना में अत्यधिक गलतियों की संभावना कम होगी और वह अपनी रचना अत्यंत भली-भांति पूर्ण कर सकेगा
पाठक वर्ग इस प्रकार की रचना को स्वीकृति देकर उसे अत्यंत ही प्रेम देंगे। रचना लेखक का प्रतिबिंब है इसीलिए इसे पूर्व योजना बनाकर ही तैयार किया जाना चाहिए।

8) तार्किक लेखन में उदाहरण का क्या महत्व है उदाहरण स्पष्ट कीजिए?

तार्किक लेखन के अंतर्गत अपनी बातों को तर्क के साथ रखना पहली शर्त है। अलग-अलग समय में अलग-अलग लेख लिखे गए हैं मध्य युग में मनुष्य अधिक तर्क के साथ अपने लेख नहीं लिखा करता था अपने वातावरण में मनुष्य द्वारा देखी गई चीजों को वह कहानियों ,कविता रखता था परंतु आधुनिक युग में लेख तार्किकता के साथ लिखे जाते हैं। आधुनिक युग में लोग जीवन के हर पहलू पर तार्किक चिंतन करने लगे हैं मनुष्य एक तार्किक प्राणी है इसलिए उसे तार्किक लेखन प्रिय होता है।

तार्किक लेखन में कई चरण होते हैं इन चरणों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण चरण हम उदाहरण को भी मानते हैं।
निम्नलिखित  रूप से स्पष्ट है कि तार्किक लेखन में उदाहरणों का क्या महत्व है-

स्पष्टता
तार्किक लेखन में उदाहरणों द्वारा और अधीक स्पष्टता प्रकट की जा सकती है। उदाहरण के लिए यदि आप गणित का कोई प्रश्न हल कर रहे हैं केवल नियम पढ़कर आप प्रश्न हल नहीं कर सकते पाठ्य पुस्तक में से आप उदाहरण को समझते वह स्वयं प्रयास करते हैं जिससे आपको स्पष्ट था होती है इसी प्रकार लेख में भी उदाहरणों द्वारा लेखक की बात पाठक तक स्पष्ट रूप से पहुंचती है। 

प्रभावी लेखन-
तार्किक लेखन में उदाहरणों को शामिल करने से लेख अत्यंत प्रभावी बन जाता है और पाठक को यह अपने जीवन में भी सहायता करता है।
उदाहरण- कई बार लोग महान जीवनी को पढ़कर अत्यंत प्रोत्साहित होते हैं और अपने जीवन में कुछ कर गुजरने का हौसला पाते हैं यह इसी कारण होता है क्योंकि जीवनी में बातों को प्रभावी ढंग से लिखा गया है

लंबे समय तक स्मरण- 
यदि किसी भी चीज में उदाहरणों को शामिल कर लिया जाए वह विषय वस्तु मनुष्य को लंबे समय तक याद रहती है इसीलिए तार्किक लेखन में भी उदाहरणों द्वारा विषय वस्तु को लंबे समय तक पाठक के स्मरण बिंदु में स्थित रहती है।
जैसे यदि कक्षा कक्ष में विद्यार्थियों को अध्यापक गणित का इतिहास की चीजें कहानियों या उदाहरण द्वारा समझाते हैं तो वह विषय वस्तु छात्र को लंबे समय तक याद रहती है।

आवश्यकतानुसार उदाहरण का प्रयोग-

संकोच उदाहरण तार्किक लेखन में सहायता करते हैं परंतु यदि इन्हीं उदाहरणों की अधिकता बढ़ जाती है तो यह कभी-कभी पाठक को मूल उद्देश्य से भटका देते हैं इसीलिए तार्किक लेखन में आवश्यकता अनुसार ही उदाहरणों का प्रयोग करना उचित होगा।

तार्किक लेखन में उदाहरणों का महत्व अत्यंत आवश्यक है परंतु उदाहरणों का प्रयोग केवल उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए किया जाना चाहिए यह उदाहरण संभवत बहुत लंबे ना हो इनका अवश्य ध्यान रखना चाहिए। तार्किक लेखन में उदाहरण संतुलित रूप प्रदान करते हैं इसकी प्रमाणिकता बनाए रखने के लिए उदाहरण देना आवश्यक है।

9) तार्किक लेखन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए?

आप गणित के कोई सवाल या विज्ञान की कोई बात पढ़ते वह समझते हैं तो उसके पीछे के तर्कों को भी अवश्य ही जानते होंगे। रामायण में हनुमान जी का समुद्र से लंका जाना इस बात का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ जिसके कारण लोग इसे केवल एक कहानी भी मानते हैं। इसीलिए अपनी बात को तर्क के साथ कहना तार्किक लेखन के अंतर्गत आता है। 

तार्किक लेखन का अर्थ-


तार्किक लेखन का अर्थ है तर्कों को आधार बनाकर लेखन कार्य करना। जो कुछ लेखक अपने आसपास देखता है उसे संबंध बनाकर अपनी रचनाओं में तर्क के साथ प्रस्तुत भी करता है। तार्किक लेखन के बिना कोई रचना केवल कहानी मात्र ही रह जाती है।

यह तार्किक लेखन एक दिन में अचानक ही नहीं बनता इसकी पूरी एक प्रक्रिया होती है जिसे आगे निम्न रूप से प्रस्तुत किया गया है-

विषय वस्तु का चयन-


तार्किक लेखन में विषय वस्तु का चुनाव अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए विषय वस्तु ऐसी होनी चाहिए जिस पर बहुत सारे तर्क दिए जा सके उदाहरण के लिए यदि विषय वस्तु इतिहास से उठाई गई है तो उसमें इतिहासकारों के मत को भी शामिल करना आवश्यक है।

विषय वस्तु को ढांचा प्रदान करना-


विषय वस्तु के चुनाव के बाद उसमें किस प्रकार से तथ्यों को लिखना है इसका निर्णय सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए लेखन के प्रारंभ में कुछ कथन तथा उसके बाद उस बात को सिद्ध करने के लिए अपने तर्क देने चाहिए और उसके बाद कब महत्वपूर्ण बातों को स्थान देना चाहिए।

व्याख्या करना-


तार्किक लेखन में केवल तर्कों का ही स्थान ना होकर व्याख्या का भी स्थान है। अपने व्याख्या को करते हुए कोई काल्पनिक चीजें ना बनाकर उसे वास्तविक रूप देना आवश्यक है।

कथन के समर्थन में तर्क-

लेखक जब भी लेखन कार्य करता है तो वह बड़ा सक्रिय होता है वह अपने लेखन के उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास करता है इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसे आवश्यक है कि जो विषय उसने चुना है उसके समर्थन में व्याख्या की है उस व्याख्या को वे तर्क के साथ साबित भी कर सके यह तर्क एक ही स्थान से ना होकर अलग-अलग स्थान से होने चाहिए। 
उदाहरण- यदि आप इतिहास में 1857 का विद्रोह पढ़ते हैं तो उसके कारण प्रभाव यह जानते हैं परंतु यह केवल व्याख्या है इसे वास्तविक रूप देने के लिए तर्क देना आवश्यक है यह तर्क इतिहासकारों द्वारा दिए गए हैं।

उदाहरणों को सम्मिलित करना- 


तार्किक लेखन में उदाहरणों को सम्मिलित करना भी आवश्यक है तार्किक लेखन में उदाहरणों के प्रयोग से कथन की प्रमाणिकता दिखाई पड़ती है अपनी बातों को उदाहरण के साथ तर्क देने से या और प्रभावशाली बनती है।

इस प्रकार तार्किक लेखन में एक के बाद एक चरण पूरा करके अपने लेखन को पूरा किया जा सकता है विषय वस्तु का चयन, व्याख्या, तर्क देना, उदाहरण, यह सभी चरण तार्किक लेखन में महत्वपूर्ण है।

10) भाव पल्लव को सउदाहरण स्पष्ट कीजिए?

हिंदी भाषा के अनेक रूप हैं इसमें कुछ रूप आकाश की तरह साफ और सरल है परंतु वही कुछ रूप अत्यधिक जटिल है जिन्हें समझ पाना आम जन की बात नहीं। भाषा के कठिन स्वरूपों को सरलता पूर्वक स्पष्ट करना ही भाव पल्लवन है

भाव पल्लवन का अर्थ-


भाव पल्लवन का अर्थ किसी भाव को सरलता व विस्तार पूर्वक करना है। 
कहावत मुहावरे लोकोक्तियां या किसी पंक्ति में जटिल भाषा में की गई बात को सरल ,संक्षिप्त व मूल उद्देश्य प्रकट करना ही भाव पल्लवन है।

भाव पल्लवन के नियम-

मूल भाव प्रकट करना-
भाव पल्लवन में केवल पंक्ति का मूल भाव स्पष्ट किया जाता है जिससे उसका उद्देश्य समझा जा सके अतिरिक्त बातों को भाव पल्लवन में जुड़ा नहीं जाता।

विश्लेषण-

भाव पल्लवन के अंतर्गत केवल मूल भाव को स्पष्ट किया जाता है उसमें कोई टिप्पणी या आलोचना नहीं की जाती यह केवल मूल भाव का विश्लेषण कर प्रस्तुत करता है।

पुनरावेक्षण-

भाव पल्लवन में भाव स्पष्ट रूप से लिखने के बाद उसे दो से तीन बार पढ़कर अवश्य देख लेना चाहिए ताकि उसमें कोई भी दोष ना रह जाए।

उदाहरणों का प्रयोग-

भाव पल्लवन में मूल भाव को स्पष्ट करने के लिए आवश्यकता पढ़ने पर उदाहरणों का प्रयोग किया जा सकता है केवल उद्देश्य यह है कि सामान्य जन को  विषयवस्तु सरल रूप में समझाया जा सके।

भाव पल्लवन का एक उदाहरण-
हिंसा बुरी चीज है पर दासता उससे भी बुरी है
यह सत्य है कि हिंसा नहीं करनी चाहिए दूसरे के प्राण छीनने का किसी व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं है परंतु दूसरे को अपने अधीन बना कर रखना उससे गुलामी कराना हिंसा से भी अधिक बुरा है किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कर उसे दास बनाना एक असहनीय अपराध है।

यह पंक्ति महात्मा गांधी द्वारा बोली गई थी सामान्य जन को यह जटिल महसूस हो सकती है इसीलिए इस पंक्ति का भाव पल्लवन किया गया जिससे यह सभी को सरल रूप में समझ आ सके वह इस पंक्ति के बोलने का उद्देश्य पूर्ण हो सके।
इस प्रकार से स्पष्ट है कि भाव पल्लवन का प्रयोग क्यों और किस प्रकार से किया जाता है इसके प्रयोग के कुछ नियम भी है।

11) प्रभावी लेखन से आप क्या समझते हैं उदाहरण भी दीजिए।

कई बार लेखक अपनी विषय वस्तु के संबंध में स्पष्ट होकर भी उनका लेखन प्रभावी नहीं बन पाता इसका एक कारण यह है कि वह यह भूल जाते हैं जितना आवश्यक विषय है उससे कहीं अधिक प्रभावी लेखन कौशल भी है यह लेखन कौशल प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद नहीं होता इसलिए इन कौशल के कारण ही आज कई महान लेखक बने हैं।

प्रभावी लेखन कौशल का अर्थ-

अपनी बात को प्रभावपूर्ण व स्पष्ट रूप से कहना ही प्रभावी लेखन कौशल है। 

प्रभावी लेखन कौशल के लिए कुछ पक्षों पर विचार देना आवश्यक है जो इस प्रकार है

भाषा पर अधिकार- 
लेखक जिस पर भाषा में अपनी बात पाठक तक पहुंचाना चाहता है उसे उस भाषा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है यदि वे भाषा के तत्व भावों की जानकारी ना रखे तो उसका लेखन पाठकों के दिल और दिमाग पर असर नहीं डालेगा। इस कारण ही लेखक का भाषा पर पूरा अधिकार होना पहली शर्त बन जाती है।

वाक्य विन्यास-
लेखक को अपनी रचना में वाक्य की बनावट छोटे और सरल रूप में करनी चाहिए जिससे वह पाठकों को समझ आ सके एक वाक्य में एक ही बात कहना उचित है इससे पाठक बिना भटके पाठन की क्रिया पूर्ण कर सकता है।

शब्दावली-
लेखक की शब्दावली अधिक होगी उसकी रचना उतनी ही प्रभावपूर्ण होती चली जाती है लेखक को अपनी शब्दावली में शब्दों के चयन का ज्ञान होना आवश्यक है उसे यह समझना होगा कि वाक्य किस शब्द के अनुरूप लिखना है।

शैली-

शैली का अर्थ लिखने का ढंग है एक बात को दो लेखक अपने अलग-अलग ढंग से लिख सकते हैं। 

मुहावरे लोकोक्तियां का प्रयोग-
अपनी बात को प्रभावी ढंग से लिखने के लिए मुहावरे और लोकोक्तियां का प्रयोग आवश्यक है इससे पाठक के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है यह मुहावरे और लोकोक्तियां इसीलिए बनाई गई है ताकि इससे भाषा का सौंदर्य विकसित होकर प्रकट हो।

व्याकरणिक शुद्धता-
प्रभावी लेखन में केवल लोकोक्तियां मुहावरे शैली या शब्दावली महत्वपूर्ण नहीं है यह व्याकरणिक दृष्टि से भी शुद्ध होना अत्यंत महत्वपूर्ण है व्याकरणिक शुद्धता प्रभावी लेखन का सौंदर्य बढ़ाती है।

अलंकारिता- 
कई लेखक कौन है अपने उपन्यास आदि में अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया है जिससे उनके उपन्यास व लेखन में चार चांद लग जाते हैं इसीलिए प्रभावी लेखन मैं भाषा को अलंकृत करने की अत्यधिक आवश्यकता होती है परंतु अत्यधिक अलंकृत भाषा भी पाठकों को समझने में कठिनाई कर सकती है जिससे भाषा का सहज प्रभा नष्ट होता है इसलिए अलंकारिता का प्रयोग सोच समझ कर किया जाना चाहिए।

इस प्रकार स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि हर व्यक्ति लेखन कार्य करता है परंतु प्रभावी लेखन के गुण को विकसित करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखकर वे अपने लेखन का विकास कर सकता है।

12) संपादकीय लेखन से आप क्या समझते हैं उदाहरण सहित उत्तर दीजिए?

बहुत समय से ही हिंदी भाषा में कई प्रकार के समाचार पत्र और पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी थी यह पत्रिकाएं आज भी प्रकाशित होती हैं तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चित्रों स्तर में इनके पढ़ने वालों की एक बड़ी संख्या है। आज देश में ना जाने कितने ही समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं इसलिए आम जनता किस प्रकार इन संपादकीय लेखन का चुनाव करें यह जानना सभी के लिए आवश्यक है। 

संपादकीय लेखन का अर्थ-
संपादकीय लेखन का शाब्दिक अर्थ समाचार पत्र के संपादक के विचारों से है प्रत्येक समाचार पत्र में संपादक प्रतिदिन के समाचार घटना और विषयों को तटस्थ होकर जनता के सामने प्रस्तुत करता है।

संपादकीय लेखन की विशेषताएं-

तटस्थ-

समाचार पत्र में संपादक अपने विचारों को ना डाल कर केवल विषय के बारे में जनता को सूचित करता है और सभी प्रकार के मत प्रस्तुत करता है वह अपना कोई विचार इसमें नहीं डालता।

भाषा-

संपादकीय भाषा अत्यंत सरल और सहज रूप में होती है जिसे कोई भी आम आदमी पढ़कर आसानी से समझ सकता है यह भाषा अत्यंत अधिक शब्दों में ना होकर बात को संक्षिप्त में प्रस्तुत करती है।

विश्वसनीयता-

संपादकीय लेखन में संपादक जो विषय वस्तु शामिल करता है वह विश्वसनीय होती है। बिना साक्ष्य के संपादक किसी भी विषय वस्तु को संपादन में शामिल नहीं करता।

उपयोगिता-

संपादकीय लेखन ना केवल समाज के एकवर्ग के लिए है बल्कि यह सभी वर्गों में अपनी उपयोगिता बनाए हुए रखता है समाचार पत्र में महिला ,बच्चे, पुरुष, विद्यार्थी, बुजुर्ग सभी वर्गों के लिए कुछ ना कुछ विषय वस्तु शामिल की जाती है जिससे समाचार पत्र की तरफ आकर्षित हो सके।

तत्कालिक घटनाओं का विवरण-

अक्सर यह देखा जाता है कि टेलीविजन पर केवल कुछ ही तत्कालीन घटनाओं के बारे में चर्चा की जाती है परंतु संपादकीय लेखन एक समय में पूरे देश भर के समाचार एक साथ प्रस्तुत करता है जिससे लोगों में रोचकता बनी रहती है। इसमें तत्कालीन घटनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी जाती है।

13) शब्दों के विभिन्न स्रोतों का परिचय दीजिए?

आज हमारी बोली जाने वाली हिंदी अनेक शब्दों से मिलकर बनी है यह शब्द आखिर कहां से आए आपने कभी इस बारे में विचार किया है इन शब्दों के विस्तार का खेल आज का नहीं बहुत पुराने समय से चला आ रहा है हिंदी भाषा में अरबी, फारसी, अंग्रेजी, उर्दू सभी भाषाओं के शब्द शामिल है जिस प्रकार एक समुद्र में बहुत सी नदियां आकर मिलती है उसी प्रकार हिंदी भाषा के समुद्र में बहुत सी भाषा के शब्द आकर मिले हैं

मुख्य रूप से हिंदी भाषा के शब्दों को 4 वर्गों में विभाजित किया जाता है
तत्सम शब्द , तद्भव शब्द, देशज शब्द और बाहरी शब्द

तत्सम शब्द-
तत्सम शब्द का अर्थ है वे शब्द जो संस्कृत के मूल रूप से हिंदी में लिए गए हो। जल व्यवस्था मैत्री सत्य पुस्तक पर्वत बालक विद्यार्थी निराशा आदि संस्कृत के तत्सम शब्द है। इन शब्दों के उदाहरण से यह बात स्पष्ट है कि संस्कृत से शब्द यथावत रूप में नहीं लिए जाते इनमें थोड़ा सा परिवर्तन भी किया जाता है। जैसे संस्कृत शब्द बालकः से विसर्ग हटाकर बालक बनाया गया। 

तद्भव शब्द-
संस्कृत से हिंदी रूप में रूपांतर किए गए शब्दों को तद्भव नाम दिया गया है। यह शब्द मूल रूप से संस्कृत के होते हैं परंतु इनमें बदलाव करके इन्हें हिंदी भाषा में प्रयोग किया जाता है जैसे हस्त को हाथ,कर्म को काम आदि शब्द है। इन शब्दों का स्वरूप अचानक संस्कृत से हिंदी में नहीं बदला गया बल्कि यह प्रक्रिया क्रमशः बहुत लंबी चली है जो पाली ,प्राकृत,अपभ्रंश भाषाओं से होती हुई आई है। इन भाषाओं के साथ शब्दों का पहले ध्वनि उच्चारण बदला तो बाद में इनका स्वरूप भी बदलता चला गया।
अनेक भाषाविदो ने तद्भव और तत्सम शब्दों के साथ-साथ अर्थ तत्सम वर्ग को भी स्वीकार किया है।

देशज शब्द -
देश जवाजा से उत्पन्न हुआ देशज शब्द वे शब्द है जिनके स्रोत हमें ना तो संस्कृत भाषा अन्य विदेशी भाषा से प्राप्त होते हैं बल्कि यह अपने ही देश में स्थानीय भाषाओं से उत्पन्न हुए शब्द है। इन शब्दों को हिंदी भाषा के सही मायने के शब्द भी कहा जा सकता है। इन शब्दों के उदाहरण लड़का,लड़की,खिड़की,लोटा,पेड़ आदि देशज शब्द है।

बाहरी शब्द-
यह शब्द अन्य भाषाओं से आए हुए हैं जैसे अरबी, फारसी ,तुर्की, जापानी ,फ्रांसीसी पुर्तगाली, मराठी, बंगाली ,आदि।

हिंदी में मुख्य रूप से 5 भाषा परिवार बताए गए हैं उसमें से आर्य परिवार की भाषाओं से आए शब्द इस प्रकार है
मराठी -चालू, लागू
द्रविड़ इटली ,सांबर, मीन(प्राचीन)

विदेशी भाषाओं से  आये शब्द-

अंग्रेजी- साइकिल रेल टिकट स्टैंड पुलिस टेलीफोन फोटो स्टॉप
अरबी -औरत ताबीज सलाम किला बगावत दफ्तर हिरासत अखबार
फारसी -खुदा जमीन सरकार नाश्ता नमक जंजीर गुलाब चपाती प्याला आस्तीन आबाद अंगूर
तुर्की -बेगम लाल बहादुर बंदूक बारूद तोप ,दरोगा
जापानी- रिक्शा
पुर्तगाली -चाबी बिस्कुट तोलिया कमीज पादरी
फ्रांसीसी -कारतूस कूपन अंग्रेजी

फ्रांसीसी और जापानी शब्द अंग्रेजी भाषा के माध्यम से हिंदी में प्रवेश कर गए आज भी अन्य भाषाओं के शब्द हिंदी में मिलते जा रहे हैं जिससे इस भाषा का स्वरूप और विस्तृत और विशाल रूप पकड़ रहा है शब्दों के भंडार को एक भाषा से ना लेकर सभी भाषाओं से लिया गया है।

14) शब्दों की अर्थ पक्ष पर प्रकाश डालिए।

मनुष्य अपने विचारों को प्रकट करने के लिए मौखिक और लिखित भाषा का प्रयोग करता है लिखित भाषा का मेल शब्दों से होता है कई बार मनुष्य शब्दों के जाल में उलझ कर रह जाता है क्योंकि एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते हैं और कई बार कई शब्दों के एक अर्थ बनते हैं इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को लिखित भाषा में इस शब्द जाल को समझना आवश्यक है इन शब्दों के अर्थ पक्ष को समझने के लिए इन्हें मुख्य रूप से 5 प्रकारों में विभाजित किया गया है

समरूपी शब्द
यह भी शब्द होते हैं जो एक से अधिक अर्थ प्रकट करते हैं जैसे 
पर- पंख ,लेकिन ,ऊपर
मगर -लेकिन ,मगरमच्छ

इन  समरूपी शब्दों के बनने का कारण विभिन्न स्रोतों से आने वाले शब्द जो एक जैसे लिखे जाते हैं उन्हें माना गया है। जैसे
हिंदी- मे मेल मिलना
अंग्रेजी- में मेल mail
हिंदी में आम -एक फल
अरबी में आम -साधारण या सामान्य

पर्याय शब्द
जब एक से अधिक शब्दों का अर्थ एक जैसा होता है तो वह पर्याय शब्द कहलाते हैं व्याकरण में इन्हें पर्यायवाची शब्द के नाम से भी जाना जाता है।

उदाहरण
सूरज- सूर्य देव आकर रवि भानु
कमल -नीरज पंकज राजीव
चंद्र- राकेश चांद  निशाकर चंद्रमा

कई विद्वानों का इन शब्दों पर अपना एक अलग मत है विद्वानों का एक समुदाय यह मानता है कि पर्यायवाची शब्द में हर शब्द का अपना एक विशिष्ट अर्थ है किसी को भी किसी के स्थान पर प्रयोग नहीं किया जा सकता। जैसे सामान्य रूप से हम यह कहते हैं कि सूरज डूब गया यह नहीं कहा जाता कि दिवाकर डूब गया।
जैसे घर और ग गृह एक दूसरे के पर्याय शब्द हैं परंतु समाज में प्रयुक्त होने वाले प्रयोग होने वाले वाक्य में घर बसाना कहते हैं गृह बसाना नहीं।

विलोम शब्द-
जिस प्रकार समान अर्थ वाले शब्दों को पर्याय का नाम दिया है उसी प्रकार विपरीत अर्थ वाले शब्द को विलोम का नाम दिया गया है
जैसे छोटा -बड़ा ,ठंडा- गरम, अच्छा- बुरा, अमीर -गरीब, आकाश -पाताल आदि। कई लोग रंगो व स्वाद को भी इस सूची में शामिल करते हैं परंतु यह गलत है हर रंग अपना एक अर्थ स्पष्ट करता है इसलिए लाल -हरा या खट्टा- मीठा यह कोई विलोम नहीं बनता। कुछ लोग ही लिंग बद लो को भी विलोम में ही शामिल कर देते हैं परंतु यह दोनों चीजें एक दूसरे से भिन्न है। जैसे पति -पत्नी यह विलोम नहीं है बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं इन्हें लिंग बद लो में प्रयोग किया जा सकता है परंतु विलोम में नहीं यह प्रतिद्वंदी नहीं है।

अनेकार्थी शब्द-
भाषा के कुछ शब्द कई अर्थों में प्रयोग होते हैं।
अनेकार्थी शब्द व समरूपी शब्द दोनों में अंतर है अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग कम शब्दों में अपनी बातों को स्पष्ट करना भी है मुहावरा अनेकार्थी का ही एक रूप है अनेकार्थी शब्द अर्थ का विस्तार करते हैं। 

सहप्रयोग शब्द -

शब्द एक दूसरे पर आश्रित होते हैं अर्थ की दृष्टि से हत्या करने पर पुलिस गिरफ्तार करती है तथा अदालत में सजा सुनाई जाती है इसमें हत्या के साथ अन्य शब्द जुड़े हुए हैं हत्या के साथ ही अपने आप अन्य शब्द ध्यान में आने लगते हैं जब एक शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिए अन्य शब्दों का उपयोग करना पड़ता है तो उसे सह प्रयोग शब्द कहा जाता है इसीलिए एक शब्द को सीखते समय हमारे लिए अन्य सहयोगी शब्द को भी सीखना अत्यंत आवश्यक होता है।


भाषा के सही प्रयोग के लिए शब्दों के सही अर्थ को समझना आवश्यक है बिना शब्दों के अर्थ जाने भाषा का प्रयोग करना असंभव है शब्दों का अर्थ ना जानना दोषपूर्ण संवाद का कारण भी बनता है।


15) तार्किक लेखन में उदाहरणों का क्या महत्त्व है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।

तर्कपूर्ण लेखन में उदाहरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे कई उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं जो तर्क की समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं। 
यहां तीन महत्वपूर्ण कारण बताए गए हैं कि तर्कपूर्ण लेखन में उदाहरण क्यों महत्वपूर्ण हैं:

1- तर्कों को स्पष्ट और स्पष्ट करना: 

उदाहरण ठोस साक्ष्य और विशिष्ट उदाहरण प्रदान करके अमूर्त या जटिल तर्कों को चित्रित और स्पष्ट करने में मदद करते हैं। 
वे तर्क को पाठक के लिए अधिक प्रासंगिक और समझने योग्य बनाते हैं। उदाहरण के लिए:
तर्क: "मीठे पेय पदार्थों पर कर बढ़ाने से मोटापे की व्यापकता को कम करने में मदद मिल सकती है।"
उदाहरण: "2014 में, मेक्सिको ने शर्करा युक्त पेय पर कर लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप पहले वर्ष के भीतर खपत में 12% की कमी आई।"
इस उदाहरण में, शर्करा युक्त पेय पदार्थों पर मेक्सिको के कर का विशिष्ट उदाहरण वास्तविक जीवन के परिणाम को प्रदर्शित करके तर्क का समर्थन करता है जो सीधे तौर पर बताए जा रहे बिंदु से संबंधित है।


2- साक्ष्य और समर्थन प्रदान करना: 

उदाहरण दावों का समर्थन करने और तर्क की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए साक्ष्य के रूप में काम करते हैं। वे प्रामाणिकता की एक परत जोड़ते हैं और प्रदर्शित करते हैं कि तर्क वास्तविक दुनिया की स्थितियों पर आधारित है। इस उदाहरण पर विचार करें:
तर्क: "स्कूलों को अनिवार्य कोडिंग कक्षाएं लागू करनी चाहिए।" उदाहरण: "राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, कोडिंग कक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों ने उच्च समस्या- समाधान कौशल और महत्वपूर्ण सोच के लिए अधिक योग्यता का प्रदर्शन किया।"
यहां, उदाहरण एक अध्ययन का संदर्भ देकर तर्क को मजबूत करता है जो स्कूलों में कोडिंग कक्षाओं के लाभों का समर्थन करने वाले अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करता है।

3- प्रतितर्कों का अनुमान लगाना और उनका समाधान करना: 

विपरीत स्थितियों या परिणामों को प्रस्तुत करके संभावित प्रतितर्कों का अनुमान लगाने और उनका समाधान करने के लिए उदाहरणों का उपयोग किया जा सकता है। 
यह लेखक को पहले से ही विरोधी दृष्टिकोणों का खंडन करने और अपने स्वयं के तर्क को मजबूत करने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए:
तर्क: "जीवनरक्षक दवाओं के विकास के लिए पशु परीक्षण आवश्यक है।"
प्रतिवाद: "पशु परीक्षण क्रूर और अमानवीय है।"
उदाहरण: "पोलियो वैक्सीन के मामले पर विचार करें, जिसे पशु परीक्षण के माध्यम से विकसित किया गया था। इस महत्वपूर्ण शोध के बिना, इस बीमारी से लाखों लोगों की जान चली गई होती।"
इस उदाहरण में, उदाहरण प्रतितर्क को स्वीकार करता है लेकिन एक मजबूत उदाहरण प्रदान करता है जो पशु परीक्षण के जीवन-रक्षक प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
तर्कपूर्ण लेखन में उदाहरण वर्णन करने, स्पष्ट करने, साक्ष्य प्रदान करने, दावों का समर्थन करने और प्रतितर्कों को संबोधित करने का काम करते हैं। वे तर्क को अधिक ठोस, ठोस और पाठक के लिए प्रासंगिक बनाकर उसकी प्रेरक शक्ति को बढ़ाते हैं।

16) कार्यालय ज्ञापन और कार्यालय आदेश में अंतर को सोदाहरण विवेचित कीजिए।

एक कार्यालय ज्ञापन और एक कार्यालय आदेश दोनों लिखित संचार के रूप हैं जो आमतौर पर संगठनात्मक सेटिंग्स में उपयोग किए जाते हैं, लेकिन वे अलग- अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं और उनकी विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। 
यहां उदाहरणों सहित दोनों के बीच अंतर की व्याख्या दी गई है:

कार्यालय ज्ञापन:

एक कार्यालय ज्ञापन, जिसे अक्सर "मेमो" के रूप में संक्षिप्त किया जाता है, एक आंतरिक संचार दस्तावेज़ है जिसका उपयोग किसी संगठन के भीतर जानकारी देने, अपडेट प्रदान करने या कर्मचारियों या विभागों से इनपुट लेने के लिए किया जाता है। 
यह आमतौर पर संचार का एक संक्षिप्त और अनौपचारिक रूप है, जिसे आंतरिक संदर्भ के लिए स्टाफ सदस्यों के बीच प्रसारित किया जाता है।

कार्यालय ज्ञापन का उदाहरण:

सेवा में: समस्त स्टाफ
प्रेषक: [प्रेषक का नाम]
दिनांक: [तिथि]

विषय: अनुस्मारक: टीम बैठक कल
सभी स्टाफ सदस्यों को सूचित किया जाता है कि कल सुबह 10:00 बजे सम्मेलन कक्ष में एक अनिवार्य टीम बैठक होगी। 
बैठक का उद्देश्य आगामी परियोजना की समय सीमा पर चर्चा करना और उसके अनुसार कार्यों का आवंटन करना है। टीम के सभी सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है।
कृपया अपने किसी भी अपडेट या प्रश्न के साथ तैयार रहें। यदि आप उपस्थित होने में असमर्थ हैं, तो कृपया अपने टीम लीडर को पहले से सूचित करें।

आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।

साभार,
[भेजनेवाले का नाम]
[प्रेषक का पदनाम/विभाग]
इस उदाहरण में, कार्यालय ज्ञापन का उपयोग उद्देश्य, समय और स्थान सहित आगामी टीम मीटिंग के बारे में सभी स्टाफ सदस्यों को सूचित करने के लिए किया जाता है। यह आंतरिक संचलन के लिए एक संक्षिप्त और सीधा संचार है।

कार्यालय आदेश:

एक कार्यालय आदेश एक आधिकारिक लिखित निर्देश है जो किसी संगठन के भीतर एक प्राधिकारी द्वारा उन निर्णयों, नीतियों या निर्देशों को संप्रेषित करने के लिए जारी किया जाता है जो पूरे संगठन या किसी विशिष्ट विभाग को प्रभावित करते हैं। यह एक औपचारिक दस्तावेज़ है जो कर्मचारियों द्वारा पालन किए जाने वाले विशिष्ट कार्यों या आवश्यकताओं की रूपरेखा देता है।
कार्यालय आदेश का उदाहरण:


[संगठन का नाम]
[विभाग का नाम]
[तारीख]

कार्यालय आदेश संख्या [आदेश संख्या]

विषय: संशोधित अवकाश नीति

हालिया नीति समीक्षा के अनुसार, प्रबंधन ने [प्रभावी तिथि] से प्रभावी, संगठन की छुट्टी नीति के संशोधन को मंजूरी दे दी है। परिवर्तन इस प्रकार हैं:
अर्जित अवकाश के अधिकतम संचय को संशोधित कर [संख्या] दिन कर दिया गया है। इस सीमा से अधिक की कोई भी छुट्टी अगले कैलेंडर वर्ष में आगे नहीं बढ़ाई जाएगी।
छुट्टी का अनुरोध करने की प्रक्रिया अद्यतन कर दी गई है। सभी छुट्टी अनुरोध अब ऑनलाइन छुट्टी प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से प्रस्तुत किए जाने चाहिए।
ये परिवर्तन अवकाश प्रशासन को सुव्यवस्थित करने और संगठनात्मक आवश्यकताओं का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए लागू किए गए हैं।
सभी कर्मचारियों से अनुरोध है कि वे संशोधित नीति से परिचित हों और इसका पालन करें। कोई भी उल्लंघन या गैर-अनुपालन अनुशासनात्मक कार्रवाई के अधीन होगा।
संशोधित अवकाश नीति से संबंधित किसी भी स्पष्टीकरण या सहायता के लिए कृपया मानव संसाधन विभाग से संपर्क करें।
ईमानदारी से,


[नाम]
[पद का नाम]
[विभाग]
इस उदाहरण में, कार्यालय आदेश का उपयोग संगठन के सभी कर्मचारियों को संशोधित छुट्टी नीति बताने के लिए किया जाता है। 
यह नीति में बदलावों की रूपरेखा तैयार करता है, प्रभावी तिथियां निर्दिष्ट करता है और अनुपालन के लिए निर्देश प्रदान करता है। स्वर औपचारिक है, और आदेश पूरे संगठन पर लागू होता है।

एक कार्यालय ज्ञापन एक अनौपचारिक आंतरिक संचार है जिसका उपयोग किसी संगठन के भीतर जानकारी देने, अपडेट करने या इनपुट मांगने के लिए किया जाता है। दूसरी ओर, एक कार्यालय आदेश पूरे संगठन या विशिष्ट विभागों को प्रभावित करने वाले निर्णयों, नीतियों या निर्देशों को संप्रेषित करने के लिए एक प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया एक औपचारिक निर्देश है।


17) सार लेखन से क्या आशय है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

सार लेखन से तात्पर्य किसी लंबे दस्तावेज़, जैसे शोध पत्र, लेख या थीसिस के संक्षिप्त सारांश या अवलोकन से है। 
यह मूल कार्य के मुख्य बिंदुओं, मुख्य निष्कर्षों और आवश्यक तत्वों को एक संक्षिप्त पैराग्राफ या कुछ पैराग्राफ में संक्षेपित करता है। 
एक सार का उद्देश्य दस्तावेज़ की सामग्री का स्पष्ट और संक्षिप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करना है, जिससे पाठकों को तुरंत यह निर्धारित करने की अनुमति मिलती है कि पूरा दस्तावेज़ प्रासंगिक है और आगे पढ़ने लायक है।

सार के दो सामान्य प्रकार हैं: सूचनात्मक सार और वर्णनात्मक सार।

जानकारीपूर्ण सार:
एक सूचनात्मक सार मूल दस्तावेज़ के मुख्य बिंदुओं और प्रमुख निष्कर्षों का संक्षिप्त सारांश प्रदान करता है। 
यह शोध प्रश्न, विधियों, परिणामों और निष्कर्षों का स्पष्ट अवलोकन प्रदान करता है। 
इसमें अक्सर विशिष्ट विवरण शामिल होते हैं, जैसे संख्यात्मक डेटा या महत्वपूर्ण निष्कर्ष।

सूचनात्मक सार का उदाहरण:

शीर्षक: "बुजुर्गों में संज्ञानात्मक कार्य पर व्यायाम का प्रभाव"

सार: यह अध्ययन बुजुर्ग वयस्कों में व्यायाम और संज्ञानात्मक कार्य के बीच संबंधों की जांच करता है। 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के 100 प्रतिभागियों के नमूने को दो समूहों में विभाजित किया गया था: एक व्यायाम समूह और एक नियंत्रण समूह। व्यायाम समूह 12-सप्ताह के एरोबिक व्यायाम कार्यक्रम में लगा हुआ था, जबकि नियंत्रण समूह ने अपनी सामान्य गतिविधियाँ बनाए रखीं। हस्तक्षेप से पहले और बाद में मानकीकृत परीक्षणों का उपयोग करके संज्ञानात्मक कार्य का मूल्यांकन किया गया था। परिणामों से पता चला कि व्यायाम समूह ने नियंत्रण समूह की तुलना में स्मृति, ध्यान और कार्यकारी कार्य में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया। इन निष्कर्षों से पता चलता है कि नियमित एरोबिक व्यायाम बुजुर्ग व्यक्तियों में संज्ञानात्मक कार्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

इस उदाहरण में, सूचनात्मक सार शोध प्रश्न, नमूना आकार, कार्यप्रणाली, मुख्य परिणाम और निष्कर्ष सहित अध्ययन के मुख्य तत्वों का एक संक्षिप्त सारांश प्रदान करता है। 
यह पाठक को अध्ययन के उद्देश्य और निष्कर्षों की समझ देने के लिए पर्याप्त जानकारी प्रदान करता है।

वर्णनात्मक सार:
एक वर्णनात्मक सार विशिष्ट विवरण या संख्यात्मक डेटा को शामिल किए बिना दस्तावेज़ के मुख्य बिंदुओं और दायरे का एक संक्षिप्त अवलोकन प्रदान करता है। 
यह दस्तावेज़ के विषय, उद्देश्य और सामान्य सामग्री का वर्णन करने पर केंद्रित है।
वर्णनात्मक सार का उदाहरण:

शीर्षक: "किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव"

सार: यह लेख किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव की पड़ताल करता है। यह सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के संभावित नकारात्मक प्रभावों की जांच करता है, जैसे अकेलेपन, अवसाद और चिंता की बढ़ती भावनाएं। लेख में स्वस्थ सोशल मीडिया आदतों को बढ़ावा देने और किशोरों में सकारात्मक मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए संभावित रणनीतियों पर भी चर्चा की गई है।

इस उदाहरण में, वर्णनात्मक सार लेख के विषय और सामान्य सामग्री का संक्षिप्त अवलोकन प्रदान करता है। 
यह किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है और विशिष्ट विवरण दिए बिना संभावित नकारात्मक प्रभावों और रणनीतियों का उल्लेख करता है।

अमूर्त लेखन में एक लंबे दस्तावेज़ के मुख्य बिंदुओं और मुख्य निष्कर्षों को संक्षिप्त सारांश में शामिल करना शामिल है। 
चाहे जानकारीपूर्ण हो या वर्णनात्मक, एक सार पाठकों को दस्तावेज़ की सामग्री की एक झलक प्रदान करता है, जिससे उन्हें यह निर्णय लेने में मदद मिलती है कि उन्हें आगे पढ़ना चाहिए या नहीं।

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